Tuesday, October 2, 2018

Anti Untouchability Week

Anti Untouchability Week

Anti Untouchability Week

Anti Untouchability week या अस्पृश्यता विरोधी सप्ताह या छुआछूत विरोधी सप्ताह उन कुरीतियों के खिलाफ मनाया जाता है जिसमे इंसानों को जाति के आधार पर बड़ा या छोटा माना जाता है । यह सप्ताह 2018 में 2 अक्टूबर से 8 अक्टूबर तक मनाया जाएगा। 

प्रारंभ के समय से ही छुआछूत समाज मे व्याप्त रही है जिसमे निचली जाति के लोगो को अछूत समझा जाता था और उन्हें छूना पाप समझा जाता था। इसी भावना को रोकने और लोगो को जागरूक करने के लिए ही 24 मई 2011 में विधायिका संसद ने इस अधिनियम को पारित किया । इस अधिनियम का मुख्य उद्देश्य पिछड़े जाति के लोगो को एक समान अवसर देने का था ।

क्यों मानते है अस्पृश्यता विरोधी सप्ताह ?

अस्पृश्यता विरोधी सप्ताह मनाने का उद्देश्य केवल यह बताना है कि हर जाति का भारत में सम्मान किया जाता है और हर जाति यहां अपना अस्तित्व रखती है । बहरत एक विविधता वाला देश है। बोली हो या भाषा , कपड़े हो या खाना यहाँ हर चीज़ में विविधता देखी जाती है ।इसी विविधता को बचाने के लिए अस्पृश्यता विरोधी सप्ताह मनाया जाता है । विधायिका संसद में पारित यह अधिनियम समानता के हक़ और सिद्धांत पर जोर देता है ।  इसमें माना जाता है कि हर व्यक्ति और हर समाज के मानव अधिकार समान है पर वास्तविकता यह है कि इस अधिनियम के बाद भी छुआछूत की खबरे सुनने को मिलती है । 
कई मामलों में दलितों को सिर्फ इसलिए मार दिया गया क्योंकि उन्होंने ऊची जाती के पानी को छू दिया था या उनके रसोई में कदम रख दिया था । ऐसे मामले एक दो नही बल्कि  बहुत सारे है जिनमे दलितों को जान से हाथ धोना पड़ा है । जो कि बहुत ही अमानवीय है । किसी को सिर्फ इसलिये मार देना क्योंकि वो छोटी जाति का है ये सोच बहुत ही घातक है । अगर ऐसा ही चलता रहा तो वो दिन दूर नही जब धरती पर जातियों का नामोनिशान मिट जाएगा।  इन सब मुश्किलों को हल करने और दलितों पर होने वाले अत्याचारों को रोकने के लिए यह सप्ताह मनाया जाता है ।
समाज में छुआछूत की भावना कुछ इस तरह व्याप्त है कि 2012 और 2013 में 80% से भी अधिक हिंसक घटनाएं दलितों के साथ ही हुए है। इस छोटी सी सोच से लड़ने के लिए सरकार और नेताओं को एक साथ आकर काम करने की आवश्यकता है।

Anti Untouchability Week

अस्पृश्यता विरोधी सप्ताह मनाने के उद्देश्य

यह अभियान केवल इसलिए शुरू किया गया क्योंकि दलितों पर होने वाली हिंसा बढ़ती जा रही थी साथ ही उन्हें न्याय भी नही मिल रहा था।  समय के साथ इस अभियान के उद्देश्यों में परिवर्तन आये पर ये परिवर्तन बहुत कम है । आज निम्न उद्देश्य मुख्य है अस्पृश्यता विरोधी सप्ताह के लिए
  • दलित सिविल सोसाइटी ने दलितों के अधिकारों के पर सरकार का ध्यान लाने के लिए यह अभियान शुरू किया गया था ।
  • देश के विकास में दलितों की भागीदारी बढ़ाने के लिए इस अभियान को शुरू किया गया था ।
  • समाज में व्याप्त छुआछूत को कम करना और दलितों को बराबरी का दर्जा दिलाना इस अभियान का एक मुख्य उद्देश्य है
  • इस अभियान को सरकार और समाज का ध्यान दलितों की शिक्षा , स्वास्थ्य और समाजिक स्थितियों से अवगत करवाना है जिससे सरकार दलितों की समस्या पर काम कर सके ।
  • यह अभियान सभी वर्गों और समाजो के बीच बराबरी लाने के लिए कार्यरत है ।

अस्पृश्यता विरोधी सप्ताह की आवश्यकता ?

इस सप्ताह या इस अभियान की आवश्यकता इसलिए है क्योंकि जब तक समाज में यह छुआछूत की धारणा रहेगी हमारा देश कभी आगे नही बढ़ पायेगा । भारत में बहुत से समाज बहुत सी जनजातियां ऐसी भी है जिन्हें तुच्छ नजरो से देखा जाता है और ऐसे में हमारा देश चाह कर भी प्रगति की राह पर अग्रसर नही हो सकता ।
कई मामले ऐसे देखे गए है जिसमे दलितों को ऊंचे जाति के लोगो ने मार दिया है या बहुत ही क्रुर सजा दी है जबकि उनकी गलती होती भी नही। 

ऐसे में सरकार को पहले से बनाये गए कानूनों को उचित रूप से कार्यान्वित करने की आवश्यकता है । सरकार को दलितों और उनकी हितों की रक्षा करनी चाहिए।  वरना वो दिन दूर नही जब हर राज्य में दंगे जैसे परिस्थितियां उतपन्न हो जाएंगी ।

आज भी भारत में पुराने जमाने की सोच चली आ रही है।  हम इक़सीवी सदी में है पर हमारी सोच आज भी बहुत पिछड़ी हुई है ऐसे में हम क्या ही तरक्की करेंगे। अस्पृश्यता विरोधी सप्ताह जागरूकता लाने का एक जरिया है कि दलित भी इंसान ही है उन्हें भी बराबरी का हक़ है। हमारे समाज मे और समाज की सोच में बदलाव की आवश्यकता है।

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